Tuesday 19 February 2013

अन्तिम एक गीत - सतीश कालसेकर


निमित्त: पाब्‍लो नेरूदा : एक साँग ऑफ़ डिस्‍पेयर


(प्रस्‍तुत कविता लघु पत्रिका आन्‍दोलन से उभरे प्रतिबद्ध मराठी कवि सतीश कालसेकर के 1970 में प्रकाशित काव्‍य संकलन 'इन्द्रियोपनिषद्' से निशिकांत ठकार ने अनूदित की है।) 

अन्तिम एक गीत तुम्‍हारे वास्‍ते लिखना चाहिए
और मिटा देना चाहिए यादों की यादों को
तुम आती थीं, तुम जाती थीं बोलती थीं न बोलती थीं
हर एक याद को बोलने वाली बनाते हुए अपनी एक पहली
और अन्तिम मृत्‍यु को कविताओं की पंक्तियों के बीच देखना चाहिए

अन्तिम एक गीत तुम्‍हारे वास्‍ते लिखना चाहिए
एक खामोश होते जा रहे विलाप को उँडेल देना चाहिए
समुद्र के एक अन्तिम मिलन को आँखों में बसाना चाहिए
हर एक हरी बेली को शुभकामना देनी चाहिए मन से
और सहगल की एक एक पंक्ति बिलखने वाली  बाँट देनी चाहिए

अन्तिम एक गीत तुम्‍हारे वास्‍ते लिखना चाहिए
दिल के भीतर कहीं कसमसाने वाली कसक को ऊपर आने देना चाहिए
हाथ पर उभरे नक्षत्रों की आहट सुनकर ईश्‍वर के साथ हस्‍तान्‍दोलन
अनजाने में चकमा देनेवाली दैवरेखाओं के लिए एक गुडबाइ
अपने भीतर एक आत्‍मगौरवपूर्ण पौरुष का अन्तिम अभिवादन

अन्तिम एक गीत तुम्‍हारे वास्‍ते लिखना चाहिए
हाँ ना हाँ ना करते हुए चुमकारा जहाँ होठों ने होठों को
स्‍तन थे जहाँ हाथ की कलाकार लम्‍बी खुरदरी अंगलियों पर गर्म-से
नखशिखान्‍त यौवन जहाँ आ गया था नर्म कोमल वासनाओं के उदगम के पास
वहीं पर थम जाना चाहिए फिर वापस लौट कर सर्वस्‍व के साथ

अन्तिम एक गीत तुम्‍हारे वास्‍ते लिखना चाहिए।

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