Saturday 30 March 2013

का. शालिनी का देहांत

'जनचेतना' पुस्‍तक प्रतिष्‍ठान की सोसायटी की अध्‍यक्ष, 'अनुराग ट्रस्‍ट' के न्‍यासी मण्‍डल की सदस्‍य, 'राहुल फ़ाउण्‍डेशन' की कार्यकारिणी सदस्‍य और परिकल्‍पना प्रकाशन की निदेशक का. शालिनी का 29 मार्च की रात निधन हो गया। शालिनी पिछले तीन महीनों से कैंसर से लड़ रही थीं। 27 मार्च की शाम उन्‍हें दिल्‍ली के धर्मशिला अस्‍पताल में भरती किया गया था जहां पिछले जनवरी से उनका इलाज चल रहा था। 28 मार्च की सुबह ब्‍लडप्रेशर बहुत कम हो जाने के कारण उन्‍हें आईसीयू में ले जाया गया था जहां 29 मार्च की रात लगभग 11.15 बजे उन्‍होंने अंतिम सांस ली।
 डॉक्‍टरों के मुताबिक रात करीब 9 बजे आंतरिक रक्‍तस्राव और सांस की नली में रुकावट के कारण 3-4 मिनट के लिए उनकी दिल की धड़कन रुक गई थी जिसे सीपीआर के ज़रिए शुरू कराया गया और फिर उन्‍हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। लेकिन करीब 1 घंटे बाद फिर से उनकी धड़कन रुकने लगी और इस बार उन्‍हें वापस लाने के डॉक्‍टरों के सारे प्रयास नाकाम रहे।
 कॉमरेड शालिनी को 29 मार्च से कीमोथिरेपी का तीसरा चक्र शुरू करना था, लेकिन उपचार से अधिक लाभ होता नहीं दिख रहा था और उनके शरीर की हालत में लगातार गिरावट आ रही थी। इसलिए उन्‍हें कालीकट के नेचरलाइफ़ इंटरनेशनल हॉस्पिटल ले जाने की योजना थी। इस बारे में आज ही धर्मशिला अस्‍पताल में उनका उपचार कर रहे डॉ. अनीश मारू से बात कर ली गई थी और 3-4 दिनों में तबियत थोड़ी ठीक होते ही उन्‍हें लेकर कालीकट आने की वहां के प्रमुख डा. जेकब से भी बात हो गई थी, लेकिन ऐसा न हो सका।
 का. शालिनी ने एक सच्‍चे कम्‍युनिस्‍ट की तरह आखिरी सांस तक बहादुरी के साथ हर तकलीफ़ का सामना किया और अंत तक मन से अपने जीवनलक्ष्‍य और कम्‍युनिस्‍ट जीवनमूल्‍यों के प्रति समर्पित रहीं। वे चिकित्‍सीय अनुसंधान के उद्देश्‍य से देहदान कर जाना चाहती थीं लेकिन इसकी कानूनी प्रक्रियाएं पूरी करने का उन्‍हें अवसर नहीं मिला। उनकी इच्‍छा के अनुसार उनके शव को लाल झण्‍डे में लपेटकर रखा जाएगा और बिना किसी धार्मिक अनुष्‍ठान के लोधी रोड , दिल्‍ली के विद्युत शवदाह गृह में 30 मार्च की शाम 4 बजे उनकी अंत्‍येष्टि की जाएगी।

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