Saturday 2 February 2013

शालिनी का मेडिकल बुलेटिन - अपडेट, 11 फरवरी 2013

23 जनवरी को हुई बायोप्‍सी की रिपोर्ट में कैंसर की प्राइमरी साइट के बारे में पुष्टि न हो पाने पर इसी बायोप्‍सी के आधार पर की गयी इम्‍यूनोहिस्‍टोकेमिस्‍ट्री जाँचों की रिपोर्ट 5 फरवरी को मिली जिसे देखने के बाद डॉक्‍टरों ने कहा कि प्राइमरी साइट 'एक्‍स्‍ट्रा हेपेटिक बिलियरी सिस्‍टम' में कहीं हो सकती है। लेकिन उनका कहना है कि इसके आधार पर कीमोथेरेपी के अगले चक्र में दवा बदलने या उपचार में कोई बदलाव करने की ज़रूरत नहीं है। ट्यूमर की वजह से पेट में पानी (एसाइटिक फ्लुइड) भरने की समस्‍या बनी हुई है और पिछली कीमोथेरेपी के बाद से दो बार शालिनी को अस्‍पताल ले जाकर पानी निकलवाना पड़ा है। डॉक्‍टरों को उम्‍मीद है कि कीमो के दूसरे चक्र के बाद इसमें कमी आयेगी। इस बीच शालिनी के लक्षणों में किंचित सुधार हुआ है; पहले की तुलना में अब वे थोड़ा-थोड़ा आहार ले सकती हैं और थोड़ा सो पा रही हैं, लेकिन शरीर में दर्द बढ़ गया है। कीमोथिरेपी के साइड इफ़ेक्‍ट्स भी दिख रहे हैं। होम्‍योपैथी की दवा वह लगातार ले रही हैं और डा. जितेंद्र शर्मा फ़ोन पर बीच-बीच में परामर्श देते रहते हैं। फ़्रूट थेरेपी भी चल रही है। 13 फरवरी की सुबह शालिनी को फिर अस्‍पताल में भरती होना है जहां कीमो देने से पहले फिर से उनकी कुछ जांचें की जाएंगी।

अभी तक धर्मशिला अस्‍पताल में चल रहे इलाज के बारे में सभी विशेषज्ञ, जिनसे हम परामर्श कर पाये हैं, उनका कहना है कि यह बिल्‍कुल सही है और कहीं भी ले जाने पर यही उपचार दिया जायेगा। लेकिन जहां भी संभव हो, हम अन्‍य विशेषज्ञों से राय लेने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। साथ ही, अन्‍य वैकल्पिक चिकित्‍सा उपचारों के बारे में भी हम पता लगा रहे हैं। यदि किसी मित्र को किसी प्रभावी और अनुभवसिद्ध उपचार के बारे में जानकारी हो तो कृपया हमें ज़रूर बताएं।


शालिनी का चिकित्‍सा बुलेटिन, 2 फरवरी 2013

शालिनी को जनवरी के दूसरे सप्‍ताह में कैंसर होने का पता चला। लखनऊ में 9 से 13 जनवरी के बीच हुई हुई जाँचों के आधार पर डॉक्‍टरों ने इसे ओवेरियन कैंसर की तीसरी अवस्‍था बताया। इसके बाद दिल्‍ली में धर्मशिला कैंसर अस्‍पताल में उनकी नए सिरे से जाँच हुई जिसमें डॉक्‍टरों ने पाया कि उनका कैंसर काफ़ी बढ़ा हुआ है और हड्डि‍यों में मेटास्‍टैसिस (कैंसर की कोशिकाओं का शरीर के अन्‍य भागों में फैलने लगना) शुरू हो चुका है। 18 जनवरी से जारी कई जाँचों के बाद भी डॉक्‍टर अभी निश्‍चित रूप से यह नहीं कह पा रहे हैं कि कैंसर का स्रोत क्‍या है। लेकिन उन्‍हें ऐसा लगता है कि यह ओवेरियन (अंडाशय के) कैंसर का सीधा मामला नहीं है। 23 जनवरी को हुई बायोप्‍सी से भी स्‍पष्‍ट पता नहीं चल सका। मगर डॉक्‍टरों ने 23 को ही कीमोथेरेपी की शुरुआत कर दी थी। अब इसी बायोप्‍सी के आधार पर की जा रही इम्‍यूनोहिस्‍टोकेमिस्‍ट्री जाँचों की रिपोर्ट 4 फरवरी को मिलेगी जिससे कैंसर के स्रोत के बारे में पता चलने की उम्‍मीद है। इसके आधार पर कीमोथेरेपी के अगले चक्र में दवा बदली जा सकती है।

डॉक्‍टरों के अनुसार शालिनी के कैंसर का पूरी तरह (क्‍योरेटिव) इलाज सम्‍भव नहीं है और वे उम्र लम्‍बी करने और लक्षणों से राहत देने के लिए उपचार (पैलिएटिव ट्रीटमेंट) दे सकते हैं। 23-24 जनवरी को उन्‍हें कीमोथेरेपी का पहला चक्र दिया गया। डॉक्‍टरों का कहना है कि 21-21 दिनों पर कीमोथेरेपी के तीन चक्र देने के बाद इसके प्रतिसाद के आधार पर वे आगे के उपचार के बारे में निर्णय लेंगे। श्रोणीय ट्यूमर की वजह से शालिनी के पेट में पानी भर जाता है जिसे 3-4 दिनों के अन्‍तर पर निकलवाना पड़ता है। वे कमज़ोर हो गयी हैं और शरीर में दर्द र‍हता है।

शालिनी की सभी रिपोर्टें टाटा मेमोरियल कैंसर इंस्‍टीट्यूट, मुम्‍बई की डा. सीमा मेढी, हिन्‍दुजा अस्‍पताल मुम्‍बई के डा. मुराद ई. लाला, लीलावती अस्‍पताल, मुम्‍बई के डा. हेमन्‍त मल्‍होत्रा, बेलफ़ास्‍ट हॉस्पिटल, आयरलैंड में क्‍लीनिकल ऑन्‍कोलॉजी में शोध कर रहे डा. प्रान्तिक दास, अमेरिका के डा. अरूप मांगलिक सहित कई विशेषज्ञों को भेजी गयी हैं और सभी की यही राय है कि अभी उन्‍हें दी जा रही चिकित्‍सा बिल्‍कुल उपयुक्‍त और सही है। आगे जो भी नई रिपोर्टें मिलेंगी उन्‍हें भी इन विशेषज्ञों के पास भेजकर उनकी राय ली जायेगी। इसके साथ ही दिल्‍ली में एम्‍स के रोटरी मेडिकल सेंटर और राजीव गांधी कैंसर इंस्‍टीट्यूट के डॉक्‍टरों की भी हम राय लेने की कोशिश कर रहे हैं।

इस बीच शालिनी का होम्‍योपैथिक इलाज भी साथ-साथ शुरू किया गया है। जगाधरी (हरियाणा) के डा. जितेन्‍द्र शर्मा का विश्‍वासपूर्वक कहना है कि उनके उपचार से शालिनी को काफ़ी फ़ायदा होगा। वे कैंसर के कुछ गम्‍भीर रोगियों का इलाज सफलतापूर्वक कर चुके हैं और मेटास्‍टैटिक कैंसर के एक रोगी का भी कुछ महीनों से उपचार कर रहे हैं जिसे फ़ायदा दिख रहा है। डा. शर्मा एक मार्क्‍सवादी हैं और आधुनिक चिकित्‍सा पद्धतियों से वाकिफ़ रहने के साथ ही होम्‍योपैथी की सीमाओं को भी समझते हैं और इसमें किये जा रहे शोध-अनुसन्‍धान से भी परिचित हैं। वे फ़ोन पर भी शालिनी के सम्‍पर्क में रहते हैं और आवश्‍यकतानुसार सुझाव देते रहते हैं।

इसके अलावा शालिनी को ''फ्रूट थेरेपी’’ भी दी जा रही है। इसमें गुयाबानो या सोरसोप नाम के फल का गूदा और उसकी पत्ति‍यों से बनी चाय का नियमित सेवन करना होता है। लातिनी अमेरिका और दक्षिणपूर्व एशिया के वर्षावनों में पाये जाने वाले इस फल के कैंसर पर असर के बारे में 1970 के दशक में अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्‍टीट्यूट ने शोध किया था जिसमें पाया गया था कि यह कीमोथेरेपी से कई गुना ज़्यादा असर करता है और कीमोथेरेपी के विपरीत सिर्फ़ कैंसर कोशिकाओं को ही मारता है। बाद में पर्ड्यू युनिवर्सिटी और दक्षिण कोरिया की कैथोलिक युनिवर्सिटी में हुए शोधों में भी इसकी पुष्टि हुई। कई वेबसाइटों पर मौजूद लेखों में कहा गया है कि कैंसर की दवाओं से खरबों डालर कमाने वाली ब‍हुराष्‍ट्रीय दवा कम्‍पनियों के दबाव में अमेरिका में इन शोधों को रोक दिया गया। एक बहुराष्‍ट्रीय दवा कम्‍पनी ने ख़ुद इस पर लम्‍बा शोध किया था लेकिन जब उसे लगा कि इसके कुदरती तत्‍वों को पेटेण्‍ट करने योग्‍य रासायनिक अवयवों में नहीं बदला जा सकता तो शोध को रोक दिया गया और इसके नतीजों को दबा दिया गया। दवा कम्‍पनियों के ही दबाव में इसका व्‍यापक प्रचार-प्रसार नहीं हो पा रहा है लेकिन स्‍वतंत्र रूप से दुनियाभर में काफ़ी लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। ब्राज़ील से मंगवाकर फल की आपूर्ति करने वाली हैदराबाद के अलवी हर्ब्‍स का कहना है कि चार हफ़्तों में इसका असर मेडिकल जाँचों में भी दिखने लगेगा।

यह स्‍पष्‍ट करना ज़रूरी है कि उपरोक्‍त वैकल्पिक चिकित्‍सा-पद्धतियों का प्रयोग धर्मशिला अस्‍पताल की डा. कमलेश मिश्रा और डा. अनीश मारू की देखरेख में चल रहे एलोपैथिक उपचार के साथ-साथ और उनकी जानकारी में चल रहा है। इससे मुख्‍य उपचार में कोई हस्‍तक्षेप नहीं है। आगे भी यदि हमें किसी बेहतर वैकल्पिक चिकित्‍सा का पता चलता है तो उसे तभी अपनाया जायेगा जब उससे मुख्‍य उपचार में कोई हस्‍तक्षेप न होता हो।

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