Sunday 7 April 2013

Friday 5 April 2013

कॉमरेड शालिनी को भावभीनी श्रद्धांजलि, उनके अधूरे कार्यों और सपनों को पूरा करने का संकल्‍प लिया गया


लखनऊ, 4 अप्रैल। कॉमरेड शालिनी जैसी युवा सांस्कृतिक संगठनकर्ता के अचानक हमारे बीच से चले जाने से जो रिक्तता पैदा हुई है उसे भरना आसान नहीं होगा। उन्होंने एक साथ अनेक मोर्चों पर काम करते हुए लखनऊ ही नहीं पूरे देश में प्रगतिशील और क्रान्तिकारी साहित्य तथा संस्कृति के प्रचार-प्रसार में जो योगदान दिया वह अविस्मरणीय रहेगा। 

का. शालिनी की स्मृति में आज यहाँ ‘जनचेतना’ तथा ‘राहुल फ़ाउण्डेशन’ की ओर से आयोजित श्रद्धांजलि सभा में शहर के बुद्धिजीवियों तथा नागरिकों के साथ ही दिल्ली, पंजाब, मुम्बई, इलाहाबाद, पटना, गोरखपुर सहित विभिन्न स्थानों से आये लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और साहित्यप्रेमियों ने उन्हें बेहद आत्मीयता के साथ याद किया। उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ ही सभा में उन उद्देश्यों को आगे बढ़ाने का संकल्प व्यक्त किया गया जिनके लिए शालिनी अन्तिम समय तक समर्पित रहीं।

शालिनी पिछले तीन महीनों से पैंक्रियास के कैंसर से जूझ रही थीं। जनवरी के दूसरे सप्‍ताह में लखनऊ में उन्‍हें कैंसर होने का पता चला। उन्‍हें तत्‍काल दिल्‍ली लाया गया जहां पता चला कि उनका कैंसर चौथी अवस्‍था में है और साथ ही उन्‍हें बोन मेटास्‍टैटिस भी है यानी कैंसर की कोशिकाएं उनकी हड्डियों में फैलने लगी थीं। तभी से दिल्‍ली के धर्मशिला कैंसर अस्‍पताल में उनका इलाज चल रहा था।  गत 29 मार्च को इसी अस्पताल में उनका निधन हो गया। वे केवल 38 वर्ष की थीं।   

राहुल फ़ाउण्‍डेशन के सचिव सत्‍यम ने कहा कि का. शालिनी का राजनीतिक-सामाजिक जीवन बीस वर्ष की उम्र में ही शुरू हो चुका था। गोरखपुर, इलाहाबाद और लखनऊ में प्रगतिशील साहित्य के प्रकाशन एवं वितरण के कामों में भागीदारी के साथ ही शालिनी जन अभियानों, आन्दोलनों, धरना-प्रदर्शनों आदि में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती रहीं। जनचेतना पुस्तक केन्द्र के साथ ही वे अन्य साथियों के साथ झोलों में किताबें और पत्रिकाएँ लेकर घर-घर और दफ़्तरों में जाती थीं, लोगों को प्रगतिशील साहित्य के बारे में बताती थीं, नये पाठक तैयार करती थीं। गोरखपुर में युवा महिला कॉमरेडों के एक कम्यून में तीन वर्षों तक रहने के दौरान शालिनी स्‍त्री मोर्चे पर, सांस्कृतिक मोर्चे पर और छात्र मोर्चे पर काम करती रहीं। एक पूरावक़्ती क्रान्तिकारी कार्यकर्ता  के रूप में काम करने का निर्णय वह 1995 में ही ले चुकी थीं।

इलाहाबाद में ‘जनचेतना’ के प्रभारी के रूप में काम करने के दौरान भी अन्य स्‍त्री कार्यकर्ताओं की टीम के साथ वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के बीच और इलाहाबाद शहर में युवाओं तथा नागरिकों के बीच विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक गतिविध्यिों में हिस्सा लेती रहीं। इलाहाबाद के अनेक लेखक और संस्कृतिकर्मी आज भी उन्हें याद करते हैं।

पिछले लगभग एक दशक से लखनऊ उनकी कर्मस्थली था। लखनऊ स्थित ‘जनचेतना’ के केन्द्रीय कार्यालय और पुस्तक प्रतिष्ठान का काम सँभालने के साथ ही वह ‘परिकल्पना,’ ‘राहुल फ़ाउण्डेशन’ और ‘अनुराग ट्रस्ट’ के प्रकाशन सम्बन्धी कामों में भी हाथ बँटाती रहीं। ‘अनुराग ट्रस्ट’ के मुख्यालय की गतिविधियों, पुस्तकालय, वाचनालय, बाल कार्यशालाएँ आदि की ज़िम्मेदारी उठाने के साथ ही कॉ. शालिनी ने ट्रस्ट की वयोवृद्ध मुख्य न्यासी दिवंगत कॉ. कमला पाण्डेय की जिस लगन और लगाव के साथ सेवा और देखभाल की, वह कोई सच्चा सेवाभावी कम्युनिस्ट ही कर सकता था। 2011 में ‘अरविन्द स्मृति न्यास’ का केन्द्रीय पुस्तकालय लखनऊ में तैयार करने का जब निर्णय लिया गया तो उसकी व्यवस्था की भी मुख्य जिम्मेदारी शालिनी ने ही उठायी। वह ‘जनचेतना’ पुस्तक प्रतिष्ठान की सोसायटी की अध्यक्ष, ‘अनुराग ट्रस्ट’ के न्यासी मण्डल की सदस्य, ‘राहुल फ़ाउण्डेशन’ की कार्यकारिणी सदस्य और परिकल्पना प्रकाशन की निदेशक थीं। ग़ौरतलब है कि इतनी सारी विभागीय ज़िम्मेदारियों के साथ ही शालिनी आम राजनीतिक प्रचार और आन्दोलनात्मक सरगर्मियों में भी यथासम्भव हिस्सा लेती रहती थीं। बीच-बीच में वह लखनऊ की ग़रीब बस्तियों में बच्चों को पढ़ाने भी जाती थीं। लखनऊ के हज़रतगंज में रोज़ शाम को लगने वाले जनचेतना के स्‍टॉल पर पिछले कई वर्षों से सबसे ज़्यादा शालिनी ही खड़ी होती थीं। 

कवयित्री कात्यायनी ने उन्हें बेहद हार्दिकता से याद करते हुए कहा कि हर पल मौत से जूझते हुए शालिनी हमें सिखा गयी कि असली इंसान की तरह जीना क्या होता है। आख़िरी दिनों तक शालिनी अपनी ज़िम्मेदारियों और राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियों के बारे में ही सोचती रहती थीं। अक्सर फोन पर वे साथियों को कुछ न कुछ जानकारी या सलाह दिया करती थीं। शुरू से ही उन्हें अपने से कई गुना ज़्यादा दूसरों का ख़्याल रहता था। उन्हें मालूम था कि मौत दहलीज़ के पार खड़ी है मगर मौत का भय या निराशा उन्हें छू तक नहीं गयी थी। स्वस्थ होकर ज़िम्मेदारियों के मोर्चे पर वापस लौटने में उनका विश्वास और इसे लेकर उनका उत्साह हममें भी आशा का संचार करता था। 

कॉ. शालिनी एक कर्मठ, युवा कम्युनिस्ट संगठनकर्ता थीं। आज के दौर में बहुत से लोगों की आस्‍थाएं खंडित हो रही हैं, लोग तरह-तरह के समझौते कर रहे हैं, बुर्जुआ संस्‍कृति का हमला युवा कार्यकर्ताओं के एक अच्‍छे-खासे हिस्‍से को कमज़ोर कर रहा है, मगर शालिनी इन सबसे रत्तीभर भी प्रभावित हुए बिना अपनी राह चलती रहीं। एक बार जीवन लक्ष्य तय करने के बाद पीछे मुड़कर उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया। उसूलों की ख़ातिर पारिवारिक और सम्‍पत्ति-सम्‍बन्‍धों से  पूर्ण विच्छेद कर लेने में भी शालिनी ने देरी नहीं की। एक सूदख़ोर व्यापारी और भूस्वामी परिवार की पृष्ठभूमि से आकर, शालिनी ने जिस दृढ़ता के साथ पुराने मूल्‍यों को छोड़ा और जिस निष्कपटता के साथ कम्युनिस्ट जीवन-मूल्यों को अपनाया, वह आज जैसे समय में दुर्लभ है और अनुकरणीय भी। 

अनुराग ट्रस्‍ट के अध्‍यक्ष और चित्रकार रामबाबू, आह्वान के सम्‍पादक अभिनव सिन्‍हा, आख़ि‍री दिनों में शालिनी के साथ रहीं उनकी दोस्‍त और कॉमरेड कविता और शाकम्‍भरी, जनचेतना की गीतिका, लेखिका सुशीला पुरी, नम्रता सचान, आरडीएसओ के ए.एम. रिज़वी आदि ने शालिनी के व्‍यक्तित्‍व के अलग-अलग पहलुओं को याद किया।

भारतीय महिला फेडरेशन की आशा मिश्रा ने कहा कि शालिनी जिन मूल्यों और जिस विचारधारा के लिए लड़ती रहीं, आखिरी सांस तक उस पर डटी रहीं। छोटी उम्र में जितनी वैचारिक समझदारी, कामों के प्रति गहरी निष्ठा शालिनी में दिखती थी, इसके उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं।

देश के अलग-अलग हिस्सों से बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, एक्टिविस्टों द्वारा भेजे गये कुछ चुनिन्‍दा  शोक-संदेशों को उनके आग्रह पर उनकी ओर से पढ़ा गया। एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सांस्‍कृतिक प्रभाग के प्रमुख निनु चपागाईं ने कहा कि उनकी पार्टी के सांस्कृतिक कार्यकर्ता जनचेतना, अनुराग ट्रस्ट और राहुल फ़ाउण्डेशन के साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं ताकि वे कामरेड शालिनी के अनेक दायित्वों को पूरा कर सकें। उन असंख्य लोगों के ज़रिए जिनके लिए उन्होंने क्रान्तिकारी साहित्य उपलब्ध तथा कराया तथा सांस्कृतिक संघर्ष के अनेक मोर्चों पर उनके कार्यों से आने वाले अनेक वर्षों तक परिणाम मिलते रहेंगे। 'पहल' के सम्‍पादक ज्ञानरंजन ने कहा कि हमारे सारे वैचारिक मोर्चों पर काम करते हुए शालिनी ने जो बलिदान दिया वो अपने आप में एक मिसाल है। इतने कठिन समय में ऐसा कोई और उदाहरण हमारे सामने नहीं है। साहित्‍यकार शिवमूर्ति ने अपने संदेश में कहा कि कामरेड शालिनी का निधन संघर्षशील आम जन के लिए एक अपूरणीय क्षति है। एक लम्बे समय से मैं उनके व्यक्तित्व के विभिन्न कोणों से परिचित था। उनकी मृत्यु पूर्व लिखी गयी लम्बी कविता ‘मेरी आखिरी इच्छा’ पढ़ने से उनके निडर और क्रान्तिकारी विचारों और दृढ़ इच्छाशक्ति का पता चलता है। 

पी.यू.सी.एल. की कविता श्रीवास्तव ने शालिनी, उनके कार्यों, उनके लेखन, उनके विचार और उनके साहस को क्रान्तिकारी सलाम करते हुए कहा कि शालिनी का ब्‍लॉग मेरे जीवन में हुई कुछ सबसे अच्छी बातों में से एक है। वरिष्‍ठ लेखक-पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि मेरे लिए शालिनी और लखनऊ में हज़रतगंज के गलियारे जनचेतना पुस्तक स्‍टॉल जैसे एक-दूसरे के पर्याय बन गये थे। शालिनी हमेशा हल्की व दोस्ताना मुस्कान से स्वागत करतीं, और नयी-पुरानी किताबों व पत्रिकाओं के बारे में बताती थीं। स्टूल पर सीधी, तनी हुई बैठी शालिनी की मुद्रा मेरे ज़ेहन में अंकित है। प्रगतिशील वसुधा के सम्‍पादक राजेन्‍द्र शर्मा ने अपने सन्‍देश में कहा कि कामरेड शालिनी ने एक साथ कई मोर्चों पर जूझते हुए जनसंघर्ष की एक व्यापक परिभाषा गढ़ी थी। उन जैसी ईमानदार साथी का इतना आकस्मिक निधन स्तब्धकारी दुर्घटना है। हमारी कतारों से एक उज्ज्वल ध्रुवतारा अस्त हो गया। 

कवि नरेश सक्सेना, मलय, विजेन्‍द्र, नरेश चन्द्रकर, कपिलेश भोज, लेखक सुभाष गाताड़े, डा. आनन्द तेलतुम्बडे, चन्‍द्रेश्‍वर, वीरेन्‍द्र यादव, मदनमोहन, भगवानस्‍वरूप कटियार, प्रताप दीक्षित, शालिनी माथुर, शकील सिद्दीकी, गिरीशचन्‍द्र श्रीवास्‍तव, अजित पुष्‍कल, फिल्‍मकार फ़ैज़ा अहमद ख़ान, उद्भावना के सम्‍पादक अजेय कुमार, बया के सम्‍पादक गौरीनाथ, सबलोग के सम्‍पादक किशन कालजयी, समयान्‍तर के सम्‍पादक पंकज बिष्‍ट, जनपथ के सम्‍पादक ओमप्रकाश मिश्र, प्रो. चमनलाल, पत्रकार जावेद नकवी, दिव्‍या आर्य, डा. सदानन्‍द शाही, शम्‍सुल इस्‍लाम, मुम्‍बई के हर्ष ठाकौर, लोकायत, पुणे के नीरज जैन, सीसीआई की ओर से पार्थ सरकार, जन संस्‍कृति मंच के महासचिव प्रणय कृष्‍ण, जलेस के प्रमोद कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता अशोक चौधरी, वी.आर. रमण, डा. मीना काला, मोहिनी मांगलिक, हरगोपाल सिंह, नाट्यकर्मी  राजेश, डा.  साधना  गुप्‍ता सहित अनेक व्‍यक्तियों ने का. शालिनी के लिए अपने शोक-संदेशों में कहा कि उन्होंने तमाम कठिनाइयों से लड़ते हुए जिस तरह जीने की जद्दोजहद जारी रखी वह सभी नौजवानों और खासकर उन स्त्रियों के लिए एक मूल्यवान शिक्षा है जो इस देश को बेड़ियों से आज़ाद कराने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। क्रान्तिकारी आन्दोलन की दशा को ध्यान में रखते हुए, उनकी कमी को पूरा करना आसान नहीं होगा। 
इस अवसर पर शालिनी के अन्तिम अवशेषों की मिट्टी पर उनकी स्मृति में एक पौधा लगाया गया।

Tuesday 2 April 2013

Condolence meeting / का. शालिनी की स्‍मृति में श्रद्धांजलि सभा

4 अप्रैल 2013

युवा क्रांतिकारी और 'जनचेतना' पुस्‍तक प्रतिष्‍ठान की अध्‍यक्ष का. शालिनी की स्‍मृति में श्रद्धांजलि सभा, सायं 5 बजे, जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ। आयोजक: जनचेतना तथा राहुल फाउंडेशन।

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4 April 2013


Condolence meeting in memory of Com. Shalini, Young Revolutionary and President of Janchetna Books Society, 5 PM, Janchetna, D-68, Nirala Nagar, Lucknow. Organised by: Janchetna and Rahul Foundation.

Condolence Messages


Very sorry to hear about her passing. I am sure her life will continue to inspire many.

Faiza Ahmad Khan
Filmmaker, Mumbai
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Very sorry to here this. You tried your best. May the departed soul rest in peace. Lets learn from her efforts and take the thought forward.

Dr. Latika
Chandigarh University

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Comrades Katyayani, Rambabu, and Satyam,

We have received the news of the passing of Comrade Shalini. It brings an especially deep sense of loss when the life of such a steadfast revolutionary worker is cut short.

The cultural workers of the UCPN(M)] express revolutionary solidarity with Janchetna, Anurag Trust and Rahul Foundation as they take up the many responsibilities fulfilled by Comrade Shalini.

However, we also know that her example will live on long after her. Likewise, her work on many fronts of the cultural struggle will definitely bear fruit for many years to come, through those she inspired, organized, and worked alongside, as well as untold numbers for whom she made revolutionary literature available.

We hope that the comrades of Janchetna, Anurag Trust and Rahul Foundation will produce a volume of memoirs about her impact, or a biography so that her example can be learned from even long after her untimely demise and far beyond the circle of those who worked directly with her.

with revolutionary solidarity,

Ninu Chapagain

Unified Nepal Communist Party (Maoist)
Chief, Cultural Bureau 



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Dear friends of Rahul Foundation and Jan Chetna,

Krantikari Salaam to Shalini, her work, her writings, her views, her courage!!

I am Kavita Srivastava from the PUCL. Shalini's Blog has been one of the nicest thing that could have happened to me. Although I regret that I learnt of it only after her death when I opened the link sent to me by somebody .

Since then I have been reading her expressions and sharing it with friends. I have found her writings very inspirational and bold. She was really a woman of courage. We have been circulating and reading her poems in particular the last wish, pablo neruda other passages like Jai Jeevan out loud and have been sharing the link of the blog to others.

IT was life that needed to live longer.

I will send the feed back to you later of how a section of the women's movement has responded to Shalini's poem's and writings when I sent the link of the blog to thefeministsindia@yahoogroups.com.


I just wanted share that there is a discrepancy in the Hindi poem " my last wish". The last paragraph of the english translation is not there in the Hindi poem. Please repaste the original Hindi poem to the blog.

The hindi lines of this para is missing.

Comrades! I do not await death
But to get back to my work.
Cancer can be defeated by
Positive attitude and firm resolve
And all possible treatments are going on.
But still if I am unable to return to my front,
There is nothing to worry,
I will remain present in your thoughts and determinations.
I know, you will turn grief into strength
To make up for my loss.
You can turn one into a hundred.
We have to save the children! Save the dreams!!
We have to wake up forgotten ideas,
And explore new thoughts!
We have to recruit new soldiers
And make the people realise once again
That they are the makers of history.
I may or may not be with you,
But this fight will go on, till victory comes.
The caravan will keep on going, until it reaches our destination.


" LAL SALAAM""

Kavita Srivastav

PUCL  

(the full text of the Last Wish in Hindi and English is posted under the label "Shalini's Page/शालिनी का पन्‍ना" on the blog. –moderator)
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I am so sorry to learn about the death of Comrade Shalini. I personally, and also on behalf of Jan Sanskriti Manch find myself one with all of you in this moment of grief and irreparable loss. Long live her memory and her dreams of a better world.

Pranay Krishna, Gen Secy. Jan sanskriti Manch

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Very sad news. Pay my tribute. Let her spirit survive through her dedicated work


Chaman Lal

(Retired) Professor Chaman Lal, Former Chairperson, Cenre of Indian Languages
Former President,JNU Teachers Association(JNUTA), Jawaharlal Nehru University
New Delhi-110067, India

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Dear Comrade

It was really sad to learn about Com Shalini's death.

Please accept our condolences on her untimely demise.

Regards
Subhash Gatade


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Our condolence .Red Salute to Com. Shalini!

Ashok Choudhary
NFFPFW


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RIP...salute

Gopi Kanta Ghosh


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RIP Com Shalini!. A big Laal Salaam to your memory..


Jawed Naqvi

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immensely saddened by the news of com shalini's death. our red salute to
her and hope that her dreams unfulfilled will one day materialize.

Shamsul Islam


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A very sad news indeed. Let us work for the realization of her unfulfilled

dreams. Lal Salaam Comrade Shalini!


Basu Acharya

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I pay my tributes to com. Shalini


P K Kaushal

M C P I(U)


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Tribute to Com.Shalini

Appukuttan P

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We express our deep sorrow over sad demise of a promising leader of our time who devoted every second of her life to achieve a goal meant for mankind.


KK Roy

Allahabad


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My red salute and heartfelt condolences to com Sh!

Dr. Anand Teltumbde

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कामरेड शालिनी के आकस्मिक निधन की खबर से गहरा आघात लगा ''जनचेतना'' के लिए यह बहुत बड़ी क्षति है। इस दुखद समय में सभी साथी अपने अंतर विवेक से अपनी जिम्‍मेवारियों को समझते हुए इस गहरे आघात से उबर पाने की शक्ति पाएं।
मलय, जबलपुर
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शालिनी को हमेशा शान्‍त, संयमित साथी के रूप में ही देखा था, किन्‍तु मृत्‍यु का सामना उसने जिस साहस,सजगता और जिजीविषा के  साथ किया वह अभूतपूर्व है। उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा। 'सुनो चारुशीला' की पाण्‍डुलिपिशालिनी ने ही टाइप की थी।
नरेश सक्‍सेना, लखनऊ
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क्रान्तिकारी संस्‍कृतिकर्मी तथा जुझारू व्‍यक्तित्‍व कामरेड शालिनी का निधन संघर्षशील आम जन के लिए एक अपूरणीय क्षति है। एक लम्‍बे समय से मैं उनके व्‍यक्तित्‍व के विभिन्‍न कोणों से परिचित था। उनकी मृत्‍यु पूर्व लिखी गई लम्‍बी कविता 'मेरी आखिरी इच्‍छा'  पढ़ने से उनके निडर और क्रान्तिकारी विचारों और दृढ़ इच्‍छाशक्ति कीजानकारी मिलती है। वे अन्‍त तक तक अपने विश्‍वास और विचारों पर अडिग रहीं यह उनके दृढ़ व्‍यक्तित्‍व को प्रमुखता से रेखांकित करता है। उनकी असामयिक मृत्‍यु उदास कर गई।

शिवमूर्ति, साहित्‍यकार, लखनऊ, 2/4/13
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शालिनी को हमने पहली बार हज़रतगंज में कॉफी हाउस के पास शाम चार बजे रोजाना लगने वाले 'जनचेतना' के स्टाल पर देखा था। शायद ये सन् 2009 की बात है, जून-जुलाई की। शालिनी बहुत ही सज़गता और तत्परता के साथ स्टाल के पास खड़ी मिलती। वह एक व्यवहार-कुशल लड़की थी। वह अध्ययनशील और विचारधारा के प्रति समर्पित और सक्रिय कॉमरेड थी।हम लोग जनचेतना के दफ्तर में जब भी जाते शालिनी कुछ काम करती नज़र आती। कई बार मैं और इंदु जून की गर्मियों में दोपहर में साहित्यिक पत्रिकाओं और किताबों के लिए जनचेतना के निराला नगर वाले मुख्य दफ्तर में पहुँच जाते। शालिनी हमलोगों के पहुँचते ही शीशे के गिलास में ठंडा पानी लाकर रख देती। कुछ देर के बाद चाय के लिए पूछती। हम लोगों के मना करने पर भी दो प्याली चाय लाकर रख देती। उसके साथ अक्सर विमला से भी मुलाकात होती। कोई साल भर के भीतर ही हम लोग शालिनी और विमला से बेहद आत्मीय होते गए। सन् 2010 की जनवरी-फरवरी में विमला ने ही मेरी कविताओं की पाण्डुलिपि तैयार की। वही बाद में 'अब भी' के नाम से मेरी कविता की पहली किताब 'उद्भावना' प्रकाशन से प्रकाशित हुयी। उसका कवर पेज भी विमला और शालिनी ने तैयार किया था। धीरे-धीरे हम लोग 'जनचेतना' के अन्य साथियों आशीष, लालचंद आदि के संपर्क में आये। हम लोग धीरे-धीरे जनचेतना की गतिविधियों में भी भाग लेने लगे। हमने जनचेतना दफ्तर में आयोजित होने वाली कई वैचारिक संगोष्ठियों में हिस्सा लिया। हमने हमेशा महसूस किया कि जनचेतना से जुड़े युवक और युवतियां न सिर्फ वैचारिक और सक्रिय कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हैं बल्कि वे बेहतर इंसान भी हैं। उनकी गोष्ठियों में वैचारिक बहसों के दौरान हमेशा हमने ईमानदारी और सच्चाई देखी। अभी कुछ माह पहले जब मुझे पता चला कि शालिनी कैंसर से पीड़ित है तो हम अवाक रह गये। हमें इस बात का गहरा अफ़सोस है कि हम शालिनी के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। अचानक जब 2 या 3 दिन पहले उसकी मौत की दुखद खबर मिली तो हमें सहसा यकीन नहीं हो पाया। हम दिन-भर शोक में डूबे रहे। हमें बराबर ये महसूस होता रहा कि हमसे हमारा कोई अपना छिन गया हो। उसकी स्मृति को हम नमन करते हैं।
चन्‍द्रेश्‍वर, लेखक, लखनऊ

2 April 2013 12:20

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Dear Comrades,
We offer our heartfelt condolences on the sad demise of Com.Shalini. She leaves behind a gap which cannot be
filled easily given the state of the revolutionary movement. It is a big loss. We hope that you will gather
the strength to overcome the hard situation. RED SALUTE TO COM. SHALINI

With revolutionary greetings,

Partha Sarkar,
For and on behalf of CCI.
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Red salute to comrade Shalini.
Kamlesh Kumar, Krantikari Lok Adhikar Sangathan, Delhi

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आपकी साथी शालिनी के बारे में पता चला। बहुत दुख हुआ। आपके लिए यह बहुत मुश्किल वक्‍त है। मैं दुआ करती हूं कि आप और आपके बाकी साथी एक-दूसरे को हिम्‍मत दे सकें।

दिव्‍या आर्या, बीबीसी


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I offer my red salutes in memory of our valiant comrade Shalini.The way she strived against all odds to survive is a lesson for all the youth and particularly women whose goal is to emancipate the country from the shackles or clutches of the ruling classes.Rahul foundation has made a greater contribution in enlightening left cadres than any left publication house in the revolutionary movement in the last 2 decades upholding the banner of Mao Tse Tung Thought or Maoism.One can never forget the huge range of publications upholding the ideas of our leaders like Lenin,Stalin or Mao as well as Bhagat Singh.I can't express how much I wished to participate in this meeting and my admiration for her all the more because she was a women. Her poem was truly inspiring and reflected the true inner strength of a revolutionary proving that revolutionaries are actually spiritual and cultivated inner change more than religious bigots or swamis preaching Vedanta.Today women sell themselves in the film and modelling world wishing to project themselves as role models on photo-covers of lucrative publications and are idolized in our society which morally regards women as sex symbols.Com Shalini's life story is an abject thorn in the flesh to that, striving to emancipate women from the clutches of slavery.May her death inspire the growth of hundreds of more women comrades like Shalini.
Harsh Thakor, Mumbai



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Our condolence to Com Shalini. Red salute.

Shweta
SRUTI (Society for Rural Urban & Tribal Initiative)


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We are extremely sad to loose such a devoted female activist. We cannot afford to loose such persons.

Mohini Manglik

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बेहद दुखद समाचार। मेरी गहरी शोक संवेदनाएं आपके साथ हैं।
अजय सिंह, लखनऊ

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Very Sad. Was just talking about her half an hour back. She was a fighter and very brave. Only solace is that she is free from suffering. 
Meena Kala
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शालिनी के निधन के बारे में जानकर बहुत दुख हुआ। मुझे अभी-अभी इसके बारे में पता चला। मेरी हार्दिक शोक संवेदनाएं।
नीरज जैन, लोकायत, पुणे

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May her soul rest in peace.
Asad M. Rizvi, Lucknow
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कॉमरेड  शालिनी को हार्दिक श्रृद्धांजलि।

कपिलेश भोज, अल्‍मोड़ा
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My Red Salute and heartfelt condolences to Com Shalini.

Manoj Sinha, Mumbai
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Just learned about Shalini’s Departure. I remember meeting her in Gorakhpur long back, introduced by Arif Aziz; I still remember our discussion on Malayalam publications industry and the writer’s cooperative, and her curiosity on how such massive numbers of copies of different books have been printed and sold in Kerala at such economic prizes. 
My heartfelt condolences and salutes. 
VR Raman, Delhi
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मेरी समूची संवेदना आप सबके साथ हैं।
सुशीला पुरी, लखनऊ

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शालिनी का सुनकर बहुत दुख हुआ। आपने पूरी कोशिश की। अरविन्‍द के बाद दूसरा बड़ा झटका है यह।
अजेय कुमार, संपादक उद्भावना

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यह बहुत हतप्रभ करने वाली खबर है। हमने एक गतिमान युवती को खो दिया। उसे सलाम।
भगवानस्‍वरूप कटियार, लखनऊ

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दुखद। मेरी हार्दिक शोक संवेदनाएं।
वीरेंद्र यादव, लखनऊ
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का. शालिनी का दुखद और असमय निधन अत्‍यंत दुख के साथ रिक्‍तता पैदा कर गया है। हम सब इसमें सहभागी हैं। शोकांजलि!
प्रताप दीक्षित, लखनऊ

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अत्‍यंत दुखद, मेरी हार्दिक संवेदनाएं।
राकेश, लखनऊ
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का. शालिनी को लाल सलाम!
राजेश, नाट्यकर्मी (जसम), लखनऊ
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मुझे अभी संदेश मिला। आज का दिन बेहद शोक का दिन है।
डा. नरेन्‍द्र, के.जी. एम.यू., लखनऊ
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हमारी बेहद गहरी शोक संवेदनाएं।
रमेश दीक्षित, वन्‍दना मिश्र
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यह खबर सुनकर बेहद दुख हुआ।
शालिनी माथुर, लखनऊ
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अत्‍यन्‍त दुखद। मेरी शालिनी से जनचेतना पर और हज़रतगंज के स्‍टाल पर अक्‍सर मुलाकात होती थी। वे हमेशा प्रगतिशील साहित्‍य के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयासरत रहीं। 
नलिन रंजन सिंह, केकेसी महाविद्यालय, लखनऊ
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हमारे सारे वैचारिक मोर्चों पर काम करते हुए उसने जो बलिदान दिया वो अपने आप में एक मिसाल है। इतने कठिन समय में ऐसा कोई और उदाहरण हमारे सामने नहीं है।
ज्ञानरंजन, सम्‍पादक 'पहल'
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साथी शालिनी के साथ काम करने का मुझे अवसर मिला, वे अपने काम के प्रति बेहद समर्पित थीं। हर काम को पूरी ईमानदारी से करती थीं। उनका जीवनकाल बहुत छोटा रहा लेकिन जनचेतना के काम को व्‍यापक बनाने में उन्‍होंने बड़ी भूमिका निभायी। उनकी कमी हमेशा खलेगी।
गंगाप्रसाद भट्ट, देहरादून

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शालिनी जी के निधन से हमने एक ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ताऔर सिद्धान्‍तनिष्‍ठ नारी को खो दिया है। आज के युग में उनकी उपस्थिति मरुस्‍थल में मरुद्यान की तरह थी।
ओमप्रकाश मिश्र, सम्‍पादक 'जनपथ', आरा

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शालिनी हमेशा की तरह अपनी इस लड़ाई में भी बहादुर रही। ईश्‍वर उसकी आत्‍मा को शान्ति दे।
डा. साधना गुप्‍ता, गोरखपुर