Messages to Shalini/शालिनी के नाम


9 comments:

  1. कॉमरेड हमें पूरा विश्‍वास है कि आप कैंसर के विरुद्ध जंग में अवश्‍य जीतेंगी और अपने मोर्चे पर लौटेंगी। कुछ पंक्तियां उधार लेकर कहना चाहूंगा:

    हम अत्यधिक विवेकशील, उदासीन और उत्साहहीन हो गये हैं, हम गहरी नींद सो गये हैं, जड़ होकर रह गये हैं। हमें उस व्यक्ति को धन्यवाद देना चाहिये जो बेशक घड़ी भर के लिये ही हमें झकझोर देता है, हमारे अन्दर आग फूंक देता है। अब तो इसका वक्त आ गया है!

    (रूदिन, तुर्गनेव)

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  2. प्रिय कामरेड, आप हमारे लिए हमेशा प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी और आपका क्रांति के इस महान लक्ष्य के प्रति समर्पण और जीवन के प्रति आशावान होना हमेशा हर पल हमे अपने कर्तव्य के प्रति कटिबद्ध करता रहेगा | यद्यपि मैं आपसे कभी नहीं मिल पायी हूँ फिर भी हमारा इस महान लक्ष्य के प्रति एक समान भावना होने के कारण एक गहरा सम्बन्ध है | आप मेरी उतनी ही प्रिय साथी हैं जितने की बाकि सभी जिनसे मैं अब तक मिल पायी हूँ |यह अत्यंत दुःख की बात है कि आप इतनी कम उम्र में इतनी असहनीय पीड़ा झेल रही हैं जिसे की सोच पाना भी बहुत मुश्किल है | इस सब के बावजूद आपका काम के प्रति समर्पण भाव और एकनिष्ठ होना हमारे अंदर ऊर्जा का संचार कर देता है | प्रिय साथी हम उम्मीद करते हैं की आप जल्द से जल्द स्वस्थ्य हो जाएँ और हमारा लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने में पथ प्रदर्शन करें |

    नूपुर ( नॉएडा )

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  3. Dear Friend,

    I feel better calling you friend rather comrade, not because you are not but I am not. Before I say something to you I should better tell you about myself. My name is Indra Kumar Chandrakar, most of my friend calls me "Inder". I belong to chhattisgarh but studying here in Delhi.

    I really feel sad to know about you. I also assume that you have really got many a good friends around you as I see your blog and stuff in it, I think who may have created such a beautiful blog and have written this much patiently. Apart from this I must say that the letter I am writing is first of its kind for me. We don't know each other, And I am writing.y

    I feel everybody some how contribute to the society by the means of their kind. I believe you may have done appreciating deal in your life through out. Usually people like you very kind hearted does, And what you get in returne is something you can feel it all about. I wish you get well soon. People like you are always needed in this society. May the Mother of all divine bless you.

    Regards!
    Inder
    indrakor@gmail.com
    indrakc@gmail.com

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  4. Dear Friend,

    I feel better calling you friend rather comrade, not because you are not but I am not. Before I say something to you I should better tell you about myself. My name is Indra Kumar Chandrakar, most of my friend calls me "Inder". I belong to chhattisgarh but studying here in Delhi.

    I really feel sad to know about you. I also assume that you have really got many a good friends around you as I see your blog and stuff in it, I think who may have created such a beautiful blog and have written this much patiently. Apart from this I must say that the letter I am writing is first of its kind for me. We don't know each other, And I am writing.y

    I feel everybody some how contribute to the society by the means of their kind. I believe you may have done appreciating deal in your life through out. Usually people like you very kind hearted does, And what you get in returne is something you can feel it all about. I wish you get well soon. People like you are always needed in this society. May the Mother of all divine bless you.

    Regards!
    Inder
    indrakor@gmail.com
    indrakc@gmail.com

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  5. कामरेड शालिनी आपको हमारा लाल सलाम।आपका उद्दात और संघर्षशील जीवन हमारे लिए हमेशा प्रेरणा स्त्रोत बना रहेगा।

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  6. कामरेड शालिनी आपको हमारा लाल सलाम।आपका उद्दात और संघर्षशील जीवन हमारे लिए हमेशा प्रेरणा स्त्रोत बना रहेगा।

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  7. शालिनी को हमने पहली बार हज़रतगंज में कॉफी हाउस के पास शाम चार बजे रोजाना लगने वाले 'जनचेतना' के स्टाल पर देखा था। शायद ये सन् 2009 की बात है, जून-जुलाई की। शालिनी बहुत ही सज़गता और तत्परता के साथ स्टाल के पास खड़ी मिलती। वह एक व्यवहार-कुशल लड़की थी। वह अध्ययनशील और विचारधारा के प्रति समर्पित और सक्रिय कॉमरेड थी।हम लोग जनचेतना के दफ्तर में जब भी जाते शालिनी कुछ काम करती नज़र आती। कई बार मैं और इंदु जून की गर्मियों में दोपहर में साहित्यिक पत्रिकाओं और किताबों के लिए जनचेतना के निराला नगर वाले मुख्य दफ्तर में पहुँच जाते। शालिनी हमलोगों के पहुँचते ही शीशे के गिलास में ठंडा पानी लाकर रख देती। कुछ देर के बाद चाय के लिए पूछती। हम लोगों के मना करने पर भी दो प्याली चाय लाकर रख देती। उसके साथ अक्सर विमला से भी मुलाकात होती। कोई साल भर के भीतर ही हम लोग शालिनी और विमला से बेहद आत्मीय होते गए। सन् 2010 की जनवरी-फरवरी में विमला ने ही मेरी कविताओं की पाण्डुलिपि तैयार की। वही बाद में 'अब भी' के नाम से मेरी कविता की पहली किताब 'उद्भावना' प्रकाशन से प्रकाशित हुयी। उसका कवर पेज भी विमला और शालिनी ने तैयार किया था। धीरे-धीरे हम लोग 'जनचेतना' के अन्य साथियों आशीष, लालचंद आदि के संपर्क में आये। हम लोग धीरे-धीरे जनचेतना की गतिविधियों में भी भाग लेने लगे। हमने जनचेतना दफ्तर में आयोजित होने वाली कई वैचारिक संगोष्ठियों में हिस्सा लिया। हमने हमेशा महसूस किया कि जनचेतना से जुड़े युवक और युवतियां न सिर्फ वैचारिक और सक्रिय कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हैं बल्कि वे बेहतर इंसान भी हैं। उनकी गोष्ठियों में वैचारिक बहसों के दौरान हमेशा हमने ईमानदारी और सच्चाई देखी। अभी कुछ माह पहले जब मुझे पता चला कि शालिनी कैंसर से पीड़ित है तो हम अवाक रह गये। हमें इस बात का गहरा अफ़सोस है कि हम शालिनी के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। अचानक जब 2 या 3 दिन पहले उसकी मौत की दुखद खबर मिली तो हमें सहसा यकीन नहीं हो पाया। हम दिन-भर शोक में डूबे रहे।हमें बराबर ये महसूस होता रहा कि हमसे हमारा कोई अपना छिन गया हो।उसकी स्मृति को हम नमन करते हैं।

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  8. शालिनी को हमने पहली बार हज़रतगंज में कॉफी हाउस के पास शाम चार बजे रोजाना लगने वाले 'जनचेतना' के स्टाल पर देखा था। शायद ये सन् 2009 की बात है, जून-जुलाई की। शालिनी बहुत ही सज़गता और तत्परता के साथ स्टाल के पास खड़ी मिलती। वह एक व्यवहार-कुशल लड़की थी। वह अध्ययनशील और विचारधारा के प्रति समर्पित और सक्रिय कॉमरेड थी।हम लोग जनचेतना के दफ्तर में जब भी जाते शालिनी कुछ काम करती नज़र आती। कई बार मैं और इंदु जून की गर्मियों में दोपहर में साहित्यिक पत्रिकाओं और किताबों के लिए जनचेतना के निराला नगर वाले मुख्य दफ्तर में पहुँच जाते। शालिनी हमलोगों के पहुँचते ही शीशे के गिलास में ठंडा पानी लाकर रख देती। कुछ देर के बाद चाय के लिए पूछती। हम लोगों के मना करने पर भी दो प्याली चाय लाकर रख देती। उसके साथ अक्सर विमला से भी मुलाकात होती। कोई साल भर के भीतर ही हम लोग शालिनी और विमला से बेहद आत्मीय होते गए। सन् 2010 की जनवरी-फरवरी में विमला ने ही मेरी कविताओं की पाण्डुलिपि तैयार की। वही बाद में 'अब भी' के नाम से मेरी कविता की पहली किताब 'उद्भावना' प्रकाशन से प्रकाशित हुयी। उसका कवर पेज भी विमला और शालिनी ने तैयार किया था। धीरे-धीरे हम लोग 'जनचेतना' के अन्य साथियों आशीष, लालचंद आदि के संपर्क में आये। हम लोग धीरे-धीरे जनचेतना की गतिविधियों में भी भाग लेने लगे। हमने जनचेतना दफ्तर में आयोजित होने वाली कई वैचारिक संगोष्ठियों में हिस्सा लिया। हमने हमेशा महसूस किया कि जनचेतना से जुड़े युवक और युवतियां न सिर्फ वैचारिक और सक्रिय कम्युनिस्ट कार्यकर्ता हैं बल्कि वे बेहतर इंसान भी हैं। उनकी गोष्ठियों में वैचारिक बहसों के दौरान हमेशा हमने ईमानदारी और सच्चाई देखी। अभी कुछ माह पहले जब मुझे पता चला कि शालिनी कैंसर से पीड़ित है तो हम अवाक रह गये। हमें इस बात का गहरा अफ़सोस है कि हम शालिनी के लिए कुछ खास नहीं कर पाए। अचानक जब 2 या 3 दिन पहले उसकी मौत की दुखद खबर मिली तो हमें सहसा यकीन नहीं हो पाया। हम दिन-भर शोक में डूबे रहे।हमें बराबर ये महसूस होता रहा कि हमसे हमारा कोई अपना छिन गया हो।उसकी स्मृति को हम नमन करते हैं।

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